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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १८७ जीव भी द्रव्यापेक्षा एक और सान्त है। क्षेत्र की अपेक्षा से वह असंख्यात प्रदेशी है अतः सान्त है। काल की अपेक्षा से वह अतीत, वर्तमान और भविष्य त्रिकालस्थायी है अतः वह नित्य है और अनन्त है। भावापेक्षा अनन्त ज्ञानपर्यव, अनन्त दर्शनपर्यव और अनन्त गुरुलघुपर्यव रूप होने से अनन्त है। इस प्रकार द्रव्य व क्षेत्र की अपेक्षा से जीव अन्त युक्त है और काल व भाव की अपेक्षा से अन्त रहित है।
मोक्ष द्रव्यापेक्षा एक होने से सान्त है। क्षेत्रापेक्षा ४५ लाख योजन आयाम-विष्कंभ व एक करोड़, बयालीस लाख, तीस हजार, दो सौ उनपचास योजन से कुछ अधिक परिधि वाला होने से सान्त है। कालापेक्षा अनादि अनन्त है और भाव की अपेक्षा भी अनन्त पर्यव रूप है। सारांश यह है, कि द्रव्य और क्षेत्र की अपेक्षा से मोक्ष अन्तयुक्त है तथा काल व भाव की अपेक्षा से अन्तरहित है।
सिद्ध द्रव्यापेक्षा एक है, क्षेत्रापेक्षा असंख्य प्रदेशों में अवगाढ़ है अतः अन्त युक्त है। काल से सिद्ध की आदि है पर अन्त नहीं। भाव की दृष्टि से सिद्ध ज्ञान, दर्शन, पर्यव रूप है और उसका अंत नहीं है।
मरण दो प्रकार का है-बालमरण और पंडितमरण। बालमरण के द्वादश विकल्प हैं
१. क्षुधा से छटपटाते हुए मरना। २. इन्द्रियादिक की पराधीनता पूर्वक मरना। ३. शरीर में शस्त्रादिक के प्रवेश से या सन्मार्ग से भ्रष्ट होकर मरना। ४. जिस गति से मरे उसी का आयुष्य बांधना। ५. पर्वत से गिरकर मरना। ६. वृक्ष से गिरकर मरना। ७. पानी में डूबकर मरना। ८. अग्नि में जलकर मरना। ९. विष खाकर मरना। १०. शस्त्र प्रयोग से मरना। ११. फाँसी लगाकर मरना। १२. गृद्ध आदि पक्षियों से नुचवाकर मरना।
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