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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन १७३ हैं। उन जीवों की सुप्तावस्था श्रेष्ठ है। ऐसे जीव सुप्तावस्था पर्यन्त अनेक प्राण-भूत-जीव-सत्त्व समुदाय के दुःख, शोक, परिताप आदि के कारण नहीं बनते अतः ऐसे जीवों का सोते रहना अच्छा है। ____ और जो जीव धार्मिक हैं, धर्मावलोकी हैं, धर्म में आसक्त हैं, धर्मानुचारी हैं ऐसे जीव जब तक जाग्रत रहते हैं तब तक अनेक प्राण-भूत-जीव और सत्त्वों के अदुःख, अपरिताप के लिये कार्य करते हैं। अतः उनकी जाग्रतावस्था श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से कितने ही जीवों का सोते रहना अच्छा है और कितने ही जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है। जयन्ती-भगवन् ! जीवों का निर्बल होना श्रेष्ठ है या सबल होना श्रेष्ठ भगवान-जयन्ती ! कितने ही जीवों की सबलता श्रेष्ठ है और कितने ही जीवों की निर्बलता श्रेष्ठ है। जयन्ती-भंते ! यह कैसे ? भगवान-जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक यावत् अधर्मानुचारी हैं उनकी निर्बलता श्रेष्ठ है। क्योंकि उनकी निर्बलता अन्य जीवों के लिये दुःख का हेतु नहीं बनती। दूसरी तरफ जो जीव धार्मिक हैं उनकी सबलता सब जीवों के लिये सुख का कारण है। जयन्ती-भंते ! जीवों की दक्षता श्रेष्ठ है या आलसीपन ? भगवान-जयन्ती ! कितने ही जीवों का उद्यमीपना श्रेष्ठ है और कितनों का निरुद्यमीपना श्रेष्ठ है। जयन्ती-भगवन् ! यह कैसे ? भगवान-जयन्ती ! जो अधार्मिक जीव हैं उनका निरुद्यमीपना श्रेष्ठ है और जो धार्मिक हैं, धर्मपरायण हैं उनका उद्यमीपना श्रेष्ठ है। जयन्ती-भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के वशीभूत जीव, क्या कर्म बाँधता है ? भगवान-जयन्ती ! केवल श्रोत्रेन्द्रिय के ही नहीं वरन् पाँचों ही इन्द्रियों के वशीभूत हुआ जीव अनन्त संसार में परिभ्रमण करता है। -भग. शतक १२, उ. २, सूत्र १-१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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