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१७२ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
भगवान हे जयन्ती ! प्राणातिपात आदि अठारह पापों का सेवन करके जीव गुरुत्व को प्राप्त होते हैं।
जयन्ती-हे भन्ते ! जीव किस तरह लघुत्व को प्राप्त होते हैं ?
भगवान-हे जयन्ती ! प्राणातिपातादि अठारह पापों के अनासेवन से जीव लघुत्व को प्राप्त होते हैं।
जयन्ती-हे भगवन् ! जीवों का भवसिद्धिकपना स्वाभाविक है या परिणाम से ?
भगवान-जयंती ! जीवों का भवसिद्धिकपना-मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता स्वाभाविक है, परिणाम से नहीं।
जयन्ती-भगवन् ! क्या सभी भवसिद्धिक आत्माएँ मोक्ष-गामिनी हैं? महावीर-हाँ, जो भवसिद्धिक हैं वे सर्व आत्माएँ मोक्षगामिनी हैं।
जयंती-भगवन् ! यदि सभी भवसिद्धिक आत्माएँ मुक्त हो जाएँगी तो क्या संसार उनसे रहित हो जाएगा ? ___ महावीर- ऐसा नहीं है। जैसे सादि तथा अनन्त व दोनों ओर से परिमित तथा दूसरी श्रेणियों से परिवृत सर्वाकाश की श्रेणी में से एक-एक परमाणु-पुद्गल प्रति समय निकालने पर अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी व्यतीत हो जायँ तथापि वह श्रेणी रिक्त नहीं होती। इसी प्रकार भवसिद्धिक जीवों के मुक्त होने पर भी यह संसार उनसे रिक्त नहीं होगा।
अथवा
जैसे भविष्यकाल के अनन्त समय भूतकाल बन चुके फिर भी भविष्यकाल के समयों का कोई अन्त नहीं-जैसे भविष्यकाल समाप्त नहीं होता इसी तरह अनन्त भवसिद्धिक मोक्ष में चले गये। अनन्त भव्य चले जाएँगे फिर भी यह लोक कभी भी भवसिद्धिक जीवों से रिक्त नहीं होगा।
जयन्ती-भन्ते ! जीव सोता हुआ श्रेष्ठ है या जाग्रत ?
भगवान-जयन्ती ! कितने ही जीवों की सुप्तावस्था श्रेष्ठ है और कितने ही जीवों की जाग्रत अवस्था उत्तम है।
जयन्ती-भगवन् ! यह कैसे ?
भगवान-जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक हैं, अधर्म का अनुसरण करने वाले हैं, अधर्मप्रिय हैं, अधर्मोपदेष्टा हैं, अधर्मावलोकी हैं, अधर्म में आसक्त
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