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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १६३ नहीं और अंडे के बिना मुर्गी नहीं और दोनों में पहले कौन हुआ यह भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि दोनों ही शाश्वतभाव हैं।
इसी प्रकार लोकान्त - अलोकान्त, लोक-सप्तम अवकाशान्तर, लोकान्त सप्तम तनुवात, लोकान्त, सप्तम पृथ्वी इसी तरह अलोकान्त के साथ उक्त सभी प्रश्न पूछने पर भगवान् ने बताया कि इनमें पूर्वापर क्रम नहीं होता । भगवान के उत्तरों को सुनकर रोह अनगार अत्यधिक संतुष्ट हुए ।
भग. शतक १, उ. ६, सूत्र २१६-२२०
लोक-स्थिति
गौतम - भगवन् ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की है ?
भगवान बोले- गौतम ! लोकस्थिति आठ प्रकार ही है - इस पृथ्वी के नीचे सबसे पहले आकाश है। आकाश स्व-प्रतिष्ठ है - वह अपने आप पर ही ठहरा है। आकाश पर वायु है। वायु के दो प्रकार हैं- घनवात और तनुवात | आकाश के पश्चात् तनुवात है और तनुवातर के पश्चात् घनवात है। घनवात पर घनोदधि- जमा हुआ पानी है। उस पानी पर यह पृथ्वी ठहरी हुई है। पृथ्वी के सहारे त्रस और स्थावर जीव रहे हुए हैं। जीवों के आधार पर अजीव है, कर्म के आधार पर जीव है। अजीवों ने जीवों को संग्रह कर रक्खा है और जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है।
गौतम - भगवन् ! इस तरह कहने का क्या अभिप्राय है कि लोक की स्थिति आठ प्रकार की है और यावत् जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रक्खा है ?
भगवान - गौतम ! जैसे कोई पुरुष चमड़े की मशक को वायु से फुलावे । फिर उस मशक का मुंह बांध दे। फिर बीच में एक रस्सी बांधकर मशक की हवा को दो विभागों में बांट दे । तदनन्तर मशक का मुंह खोलकर उसमें पानी भर दे और फिर मशक का मुँह बन्द कर दे और बीच की रस्सी भी खोल दे। ऐसा करने पर एक ही मशक के आधे भाग में हवा होगी और आधे भाग में पानी होगा। हवा सूक्ष्म है और पानी उससे स्थूल है फिर भी हवा के आधार पर पानी रहता ही है । अथवा एक और उदाहरण से वह बात स्पष्ट हो जाती है, जैसे कि - कोई पुरुष चमड़े की मशक को हवा से फुलाकर अपनी कमर पर बांध ले । फिर वह पुरुष अथाह दुस्तर पानी में प्रवेश कर जाय फिर भी वह पुरुष मशक पर रहेगा, समुद्र में डूबेगा नहीं ।
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