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१२६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन अस्तित्व मानते हैं वे क्रियावादी हैं। क्रियावादियों के एक सौ अस्सी प्रकार बताये हैं।
(२) अक्रियावादी का यह मन्तव्य था कि चित्तशुद्धि की ही आवश्यकता है। इस प्रकार की विचारधारा वाले अक्रियावादी हैं अथवा जीव आदि पदार्थों को जो नहीं मानते हैं वे अक्रियावादी हैं। अक्रियावादी के चौरासी प्रकार हैं।
(३) अज्ञानवादी-अज्ञान ही श्रेय रूप है। ज्ञान से तीव्र कर्म का बन्धन होता है। अज्ञानी व्यक्ति को कर्मबन्धन नहीं होता। इस प्रकार की विचारधारा वाले अज्ञानवादी हैं। उनके सड़सठ प्रकार हैं। . (४) विनयवादी-स्वर्ग, मोक्ष आदि विनय से ही प्राप्त हो सकते हैं। जिनका निश्चित कोई भी आचारशास्त्र नहीं, सभी को नमस्कार करना ही जिनका लक्ष्य रहा है वे विनयवादी हैं। विनयवादी के ३२ प्रकार हैं।
ये चारों समवसरण मिथ्यावादियों के ही बताये गये हैं। तथापि जीव आदि तत्त्वों को स्वीकार करने के कारण क्रियावादी सम्यग्दृष्टि भी हैं। शतक ३०, उद्देशक १ में इन चारों समवसरणों पर विस्तार से विवेचन किया है। ___ भगवती शतक ४, उद्देशक ५ में जम्बूद्वीप के अवसर्पिणीकाल में जो सात कुलकर हुए हैं, उनके नाम विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशोमान्, अभिचन्द्र, प्रसेनजित, मरुदेव और नाभि हैं। कुलकरों के सम्बन्ध में जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति की प्रस्तावना में हम विस्तार से लिख चुके हैं। कालास्यवेशी
भगवतींसूत्र शतक १, उद्देशक ९ में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के कालास्यवेशी अनगार ने भगवान् महावीर के स्थविरों से पूछा-सामायिक क्या है ? प्रत्याख्यान क्या है? संयम क्या है ? संवर क्या है ? विवेक क्या है? व्युत्सर्ग क्या है? क्या आप इनको जानते हैं? इनके अर्थ को जानते हैं? स्थविरों ने एक ही शब्द में उत्तर दिया-आत्मा ही सामायिक, प्रत्याख्यान, संयम आदि है और आत्मा ही उसका अर्थ है। इससे स्पष्ट है कि जैनदर्शन की जो साधना है वह सब साधना आत्मा के लिए ही है।
पुनः कालास्यवेशी ने जिज्ञासा प्रस्तुत की-आत्मा सामायिक आदि है तो फिर आप क्रोध, मान, माया, लोभ आदि की निन्दा, गर्दा क्यों करते हैं? क्योंकि निन्दा तो असंयम है। स्थविरों ने कहा-आत्मनिन्दा असंयम नहीं है।
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