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________________ ९६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन महावीर से शिष्य बनाने की प्रार्थना की और चिरकाल तक भगवान् के साथ रहा भी। इसका सविस्तृत वर्णन प्रस्तुत प्रकरण में आया है। गोशालक मंख कर्म करने वाले मंखली नामक व्यक्ति का पुत्र था। "गोसाले मंखलीपुत्ते" शब्द का प्रयोग भगवती, उपासकदशांग आदि आगमों में अनेक स्थलों पर हुआ है। मंख का अर्थ कहीं पर चित्रकार२६० और कहीं पर चित्रविक्रेता२६१ मिलता है। आचार्य अभयदेव ने अपनी टीका में लिखा है "चित्रफलकं हस्ते गतं यस्य स तथा " अर्थात् जो चित्रपट्टक हाथ में रखकर आजीविका करता है। मंख नाम की एक जाति थी। उस जाति के लोग पट्टक हाथ में रखकर अपनी आजीविका चलाते थे। जैसे आज डाकोत लोग. शनिदेव की मूर्ति या चित्र हाथ में रखकर अपनी जीविका चलाते हैं। धम्मपद अट्ठकथा,२६२ मज्झिमनिकाय२६३ अट्ठकथा में मंखलि गोशालक के संबंध में प्रकाश डालते हुए उसका नामकरण किस तरह से हुआ, इस पर एक कथा दी है। उनके मतानुसार गोशालक दास था। एक बार वह तैल-पात्र लेकर अपने स्वामी के आगे-आगे चल रहा था-फिसलन की भूमि आई। स्वामी ने उसे कहा-'तात! मा खलि, तात! मा खलि'-अरे, स्खलित मत होना। पर गोशालक स्खलित हो गया और सारा तेल जमीन पर फैल गया। स्वामी के भय से भीत बनकर वह भागने का प्रयास करने लगा। स्वामी ने उसका वस्त्र पकड़ लिया। वह उस वस्त्र को छोड़कर नंगा ही वहाँ से चल दिया। इस प्रकार वह नग्न साधु हो गया और मंखलि के नाम से विश्रुत हुआ। प्रस्तुत कथानक एक किंवदन्ती की तरह ही है और यह बहुत ही उत्तरकालीन है, इसलिए ऐतिहासिक दृष्टि से चिन्तनीय है। आचार्य पाणिनि ने मस्करी शब्द का अर्थ परिव्राजक किया है ।२६४ आचार्य पतञ्जलि ने पातञ्जल महाभाष्य में लिखा है-मस्करी वह साधु नहीं है जो अपने हाथ में मस्कर या बांस की लाठी लेकर चलता है। मस्करी वह है जो उपदेश देता है-कर्म मत करो, शान्ति का मार्ग ही श्रेयस्कर है।२६५ आचार्य पाणिनि और आचार्य पतञ्जलि के अनुसार गोशालक परिव्राजक था और 'कर्म मत करो' इस मत की संस्थापना करने वाली संस्था का संस्थापक था। जैनसाहित्य की दृष्टि से वह मंखली का पुत्र था और गोशाला में उसका जन्म हुआ था। इस तथ्य की प्रामाणिकता पाणिनि२६६ और आचार्य बुद्धघोष२६७ के द्वारा भी होती है। जैन आगम में गोशालक को आजीविक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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