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________________ ९४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन गणधर गौतम ने जिज्ञासा व्यक्त की कि देवानन्दा ब्राह्मणी इतनी रोमाञ्चित क्यों हुई है ? उसके स्तनों से दूध की धारा क्यों प्रवाहित हुई है ? भगवान् महावीर ने कहा- देवानन्दा मेरी माता है । पुत्रस्नेह के कारण ही यह रोमाञ्चित हुई है । भगवान् महावीर ने गर्भ-परिवर्तन की अज्ञात घटना बताई । ऋषभदत्त और देवानन्दा के हर्ष का पार नहीं रहा। उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की। गर्भ-परिवर्तन की घटना को जैनपरम्परा में एक आश्चर्य के रूप में लिया है। आचारांग, २५४ समवायांग, २५५ स्थानांग २५६ आवश्यकनिर्युक्ति२५७, प्रभृति में स्पष्ट वर्णन है कि श्रमण भगवान् महावीर ८२ रात्रि दिवस व्यतीत होने पर एक गर्भ से दूसरे गर्भ में ले जाए गए। जैनागमों की तरह वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में भी गर्भपरिवर्तन का वर्णन प्राप्त है। जब कंस वसुदेव की सन्तानों को समाप्त कर देता था तब विश्वात्मा ने योगमाया को यह आदेश दिया कि वह देवकी का गर्भ रोहिणी के उदर में रखे । विश्वात्मा के आदेश व निर्देश से योगमाया देवकी का गर्भ रोहिणी के उदर में रख देती है। तब पुरवासी अत्यन्त दुःख के साथ कहने लगे- हाय ! देवकी का गर्भ नष्ट हो गया । २५८ आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने अनेक स्थानों पर परीक्षण करके यह प्रमाणित कर दिया है कि गर्भपरिवर्तन असंभव नहीं है । जमाली भगवतीसूत्र शतक ९, उद्देशक ३३ में जमाली और प्रियदर्शना का वर्णन है । विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार जमाली महावीर की बहिन सुदर्शना का पुत्र था, अतः उनका भानेज था और महावीर की पुत्री प्रियदर्शना का पति था। इस कारण उनका जामाता भी था। जब भगवान् महावीर क्षत्रियकुंड नगर में पधारे तब भगवान् महावीर के पावन प्रवचन को श्रवण कर जमाली अन्य ५०० क्षत्रिय कुमारों के साथ महावीर के संघ में दीक्षित हुए और जमाली की पत्नी प्रियदर्शना भी एक सहस्र स्त्रियों के साथ दीक्षित हुई। जमाली के विरोधी होने का इतिहास प्रस्तुत प्रकरण में दिया गया है। एक बार जमाली भगवान् महावीर की बिना अनुमति प्राप्त किए ही ५०० श्रमणों के साथ पृथक् प्रस्थान कर गए। उग्र तप एवं नीरस आहार से उनके शरीर में पित्तज्वर हो गया। वे पीड़ा से आकुल-व्याकुल हो रहे थे। उन्होंने अपने सहवर्ती श्रमणों को शय्या संस्तारक करने का आदेश दिया। पीड़ा के कारण एक क्षण का विलम्ब भी उन्हें सह्य नहीं था। उन्होंने पूछाशय्या संस्तारक कर दिया है ? साधुओं ने निवेदन किया- जी हाँ, कर दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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