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भगवती सूत्र : एक परिशीलन ९३ लेकर महावीर युग तक गणधर गौतम के जीव का महावीर के साथ सम्बन्ध रहा है। प्रस्तुत प्रसंग से यह बात स्पष्ट है कि जरा-सा मोह भी मोहन (भगवान्) बनने में अन्तरायभूत होता है।
भगवतीसूत्र शतक ७, उद्देशक ९ में भगवान् महावीर के युग में हुए महाशिलाकंटक संग्राम का उल्लेख है। युद्ध का लोमहर्षक वर्णन पढ़कर लगता है कि आधुनिक वैज्ञानिक साधनों की तरह उस युग में भी तीक्ष्ण और संहारकारी साधन थे। इस युद्ध का, जिसे जैनपरम्परा में महाशिलाकंटक युद्ध कहा है तो बौद्ध साहित्य के दीघनिकाय की महापरिनिव्वाणसुत्त तथा उसकी अट्ठकथा में बज्जीविजय नाम से वर्णन मिलता है। यह सत्य है कि जैन और बौद्ध परम्परा में युद्ध के कारण, युद्ध की प्रक्रिया और युद्ध की निष्पत्ति आदि भिन्न-भिन्न मिलती है तथापि दोनों का सार यही है कि वैशाली, जो गणतन्त्र की राजधानी थी, उस पर राजतन्त्र की राजधानी मगध की ऐतिहासिक विजय हुई थी। जैनपरम्परा में चेटक सम्राट् लिच्छवियों के नायक हैं तो बौद्धपरम्परा केवल वज्जीसंघ (लिच्छवी संघ) को प्रस्तुत करती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से राजा कूणिक की ३३ करोड़ सेना और सम्राट चेटक की ५९ करोड़ सेना आदि का जो वर्णन है वह चिन्तनीय है। इस संख्या के सम्बन्ध में मनीषीगण अपना मौलिक चिन्तन और समाधान प्रस्तुत करें, यह अपेक्षित है। हमने प्रस्तुत प्रसंग को बहुत ही विस्तार के साथ जैन कथासाहित्य की विकास यात्रा ग्रन्थ में लिखा है। जिज्ञासु पाठक उसका अवलोकन करें। वैदिक परम्परा में देवासुरसंग्राम का जैसा उल्लेख और वर्णन है, वह वर्णन प्रस्तुत आगम के महाशिलाकंटक और रथमूसल संग्राम को पढ़ते हुए स्मरण हो आता है। देवानन्दा ब्राह्मणी
भगवतीसूत्र शतक ५, उद्देशक ३३ में देवानन्दा ब्राह्मणी का उल्लेख है। भगवान् महावीर एक बार ब्राह्मणकुण्ड ग्राम में पधारे। वहाँ ऋषभदत्त अपनी पत्नी देवानन्दा के साथ दर्शन के लिए पहुँचा। देवानन्दा महावीर को देखकर रोमाञ्चित हो जाती है। उसका वक्ष उभरने लगता है एवं आँखों से हर्ष के आँसू उमड़ने लगते हैं। उसकी कंचुकी टूटने लगी और स्तनों से दूध की धारा प्रवाहित होने लगी।
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