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एकीभाव स्तोत्र ]
आनन्द आँसू बदन धोय तुमसों चित सानै । गदगद सुरसौं सुयश - मन्त्र पढ़ि पूजा ठानै ॥ ताके बहुविधि व्याधि- व्याल चिरकाल निवासी । भाजैं थानक छोड़ देह - बॉंबई के वासी ॥३ ॥
दिवितैं आवनहार भये भवि-भाग उदयबल । पहले ही सुर आय कनकमय कीय महीतल ॥ मन-गृह ध्यान- दुआर आय निवसो जगनामी । जो सुरवन तन करो कौन यह अचरज स्वामी ॥४ ॥
प्रभु सब जग के बिना हेतु बान्धव उपकारी । निरावरन सर्वज्ञ शक्ति जिनराज तिहारी ॥ भक्ति-रचित मम चित्त- सेज नित वास करोगे । मेरे दुख - सन्ताप देखि किम धीर धरोगे ॥५ ॥
भव-वन में चिरकाल भ्रमो कछु कहिय न जाई । तुम थुति - कथा - पियूष - वापिका भागन पाई ॥ शशि तुषार घनसार हार शीतल नहिं जा सम । करत न्हौन ता माहिं क्यों न भवताप बुझे मम ॥६॥
श्रीविहार परिवाह होत शुचि-रूप सकल जग । कमल कनक आभा व सुरभि श्रीवास धरत पग ॥ मेरो मन - सर्वङ्ग परम प्रभु को सुख पावै । अब सो कौन कल्याण जो न दिन-दिन ढिंग पावै ॥७ ॥
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