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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
मोह कर्म को नाश मेटकर, सब जग की आसा । निज पद में थिर होय लोक के, शीश करो वासा ॥२३॥ बोधिदुर्लभ भावना
दुर्लभ है निगोद से थावर, अरू त्रस गति पानी । नर काया को सुरपति तरसे, सो दुर्लभ प्राणी ॥ उत्तम देस सुसंगति दुर्लभ, श्रावक कुल पाना । दुर्लभ सम्यक् दुर्लभ संयम, पंचम गुण ठाना ॥२४॥ दुर्लभ रत्नत्रय आराधन, दीक्षा का धरना । दुर्लभ मुनिवर को व्रत पालन, शुद्ध भाव करना ॥ दुर्लभ तैं दुर्लभ है चेतन, बोधि ज्ञान पावै ॥ पाकर केवलज्ञान नहीं फिर, इस भव में आवै ॥२५ ॥ धर्म भावना एकान्तवाद के धारी जग में, दर्शन बहुतेरे । कल्पित नाना युक्ति बनाकर, ज्ञान हरें मेरे ॥ हो सुछन्द सब पाप करें सिर, करता के लावें । कोई छिनक कोई करता से, जग में भटकावें ॥२६ ॥ वीतराग सर्वज्ञ दोष बिन, श्री जिनकी वानी । सप्त तत्त्व का वर्णन जामें, सब कोसुख दानी ॥ इनका चिंतवन बार-बार कर, श्रद्धा उर धरना । 'मंगत' इसी जतन तैं इकदिन, भवसागर तरना ॥२७ ॥
अपूर्व अवसर
अपूर्व अवसर ऐसा किस दिन आयेगा, कब होऊँगा बाह्यान्तर निर्ग्रन्थ जब । सम्बन्धों का बंधन तीक्षण छेद कर, विचरूँगा कब महत्पुरूष के पंथ जब ॥१ ॥
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