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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह जो जानै गुण ब्रह्म के, सो जाने यह भेद। साख जिनागम सौं मिले, तो मत कीज्यौ खेद ॥४५॥
अन्तिम प्रशस्ति नगर आगरा अग्र है, जैनी जन को वास। तिह थानक रचना करी, 'भैया' स्वमति प्रकास ॥४६॥ संवत् विक्रम भूप को, सत्तरह सै पंचास। फागुन पहले पक्ष में, दशों दिशा परकास ॥४७॥
निमित्त-उपादान दोहा
निमित्त का पक्ष गुरू उपदेश निमित्त बिन, उपदान बलहीन। जयों नर दूजे पाँव बिन, चलवे को आधीन।।१॥ हो जाने था एक ही, उपादान सौं काज। थके सहाई पौन बिन, पानी माहिं जहाज ॥२॥
उपादान का समाधान ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिव मग धार। उपदान निहचै जहाँ, तहाँ निमित्त व्यवहार ॥३॥ उपादान निजगुण जहाँ, तहाँ निमित्त पर होय। भेदज्ञान परवान विधि, विरला बूझै कोय॥४॥ उपादान बल जहाँ तहाँ, नहिं निमित्त को दाव। एक चक्र सौं रथ चले, रवि को यहै स्वभाव ॥५॥ सधै वस्तु असहाय जहँ, तहँ निमित्त है कौन ? ज्यों जहाज परवाह में, तिरे सहज बिन पौन ॥६॥ उपादान विधि निरवचन, है निमित्त उपदेश। बसे जु जैसे देश में, करै सु तैसे भेष ॥७॥
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