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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह जो आवैं तो आवो इस तरह, कूदे अग्नि मझार। देय परीक्षा अपने शील को, होवे मेरी पटनार ॥३॥ सीता एहि पन धारियो, होवे कुण्ड तैयार । अगन जलावो देरी मत करो, सो जोजन विस्तार ॥४॥ साड़ी कसि त्यारी करी, अंग ढको बड़ भाग। कुण्ड खुदायों मन भावतो, चेतन कर दई आग ॥५॥ जाय चढ़ी ऊँचे दमदमे, देखे देव अपार । सत मूरत सूरत सोहनी, मन में हरष अपार ॥६॥ देखें सुरगों के देवता, देखें भवन पतीस। चन्द सूरज देखें ज्योतीषी, देखें भूत पतीस ॥७॥ देखें सब विद्याधरा, देखें गण गन्धर्व। क मर कसैं फौजें आ पड़ी देखें राजा सर्व ॥८॥ डीग अगन उठी गगन लों, तड़ तडाट भयो घोर। कहत प्रजा श्रीराम से, क्यों प्रभु भये हो कठोर ॥९॥ बज्र बचें ना ऐसी अगन मैं,फाटे धरणि पताल। पर्वत फटि मठ गिर पड़े, हे प्रभु कीजिए टाल ॥१०॥ राम खड्ग सूत्यो हाथ में, मत कोई कहो जी बनाय। आज्ञा माने मेरी जानकी, देवे भरम मिटाय ॥११॥ हुक्म दिये रघुवीर ने, शील परीक्षा देय। नातर क्यों आई तू यहाँ, परजा करे है सन्देह ॥१२॥ पंच परम गुरु बन्दि के, करि पति कूँ परिणाम। छिमा ही कराई सब जीव सौ, देखे लछमन राम ॥१३॥ पुत्र जुगल छोड़े रोवते, सोहे शची समान। हरष भरी सतवंती महा, बोली बचन महान ॥१४॥ जो पर पुरूष निहारि के, मैं कछु किये है कुभाव। भस्म अग्नि मोहि कीजिये, नातर जल होय जाय॥१५॥
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