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बारहमासा( राजुल) ]
[३४१ (झड़ी) अजी त्रिया वेद मिट गया, पाप कट गया; पुण्य चढ़ गया बढ़ा पुरुषार थ । करे धर्म अरथ फल भोग रुचे परमारथ। वो स्वर्ग सम्पदा भुक्ति, जायगी मुक्ति; जैन की उक्ति में निश्चय धरना। निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना। मैं लूंगी. ॥ जो पढ़े इसे नर नारि, बढ़े परिवार; सकल संसार में महिमा पावें। सुन सतियन शील कथान विघ्न मिट जावै॥ नहिं रहे दुहागिन दुखी, होय सब सुखी; मिटे बेरुखी, करें पति आदर । वे होय जगत में महा सतियों की चादर ॥
(झर्टवें) मैं मानुष कुल में आया, अरु जाति जती कहलाया। है कर्म उदय की माया, बिन संयम जन्म गवाया।
(झड़ी) है दिल्ली नगर सुवास, वतन है खास; फाल्गुन मास अठाई आठे। हों उनके नित कल्याण जो लिख-लिख बाटें। अजी विक्रम अब्द उनीस, पै धर पैंतीस; श्री जगदीश का ले लो शरणा। कहैं दास नैन सुख दोष पै दृष्टि न धरना। निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना ॥ मैं लूंगी. ॥
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