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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह मेरा हुआ जन्म यों उग्रसैन के घर में। नहिं लिखा करम में भोग, पड़ा है जोग; करो मत सोग जाऊँ गिरनारी। है मात-पिता अरु भ्रात से क्षमा हमारी॥
(झर्वटें) मैं पुण्य प्रताप तुम्हारे, घर भोगे- भोग अपारे । जो विधि के अंक हमारे, नहिं टरे किसी के टारे ॥
(झड़ी) मेरी सखी सहेली वीर, न हो दिलगीर; धरो चित धीर मैं क्षमा कराऊँ । मैं कुल को तुम्हारे कबहूँ न दाग लगाऊँ। वह ले आज्ञा उठ खड़ी, थी मङ्गल घड़ी; वन में जा पड़ी सुगुरु के चरना। निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना ॥ मैं लूंगी. ॥
जेठ मास
(झड़ी) अजी पड़े जेठ की धूप, खड़े सब भूप; वह कन्या रूप सती बड़ भागन । कर सिद्धों को प्रणाम किया जग त्यागन। अजि त्यागे सब सिंगार, चूडियाँ तार; कमण्डल धार के लई पिछौवी। अरु पहर कै साड़ी श्वेत उपाड़ी चौटी।
(झवटें) उन महा उग्र तप कीना, फिर अच्युतेन्द्र पद लीना। है धन्य उन्हीं का जीना, नहीं विषयन में चित दीना॥
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