SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८] [ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह (झर्वटें) कीचक ने मन ललचाया, द्रोपदी पर भाव धराया। उसे भीम ने मार गिराया, उन किया तैसा फल पाया। (झड़ी) फिर गह्या दुर्योधन चीर, हुई दिलगीर; जुड़ गई भीर लाज अति आवै। गये पाण्डु जुये में हार न पार बसावै॥ भये परगट शासन वीर, हरी सब पीर; बधाई धीर पकर लिये चरना। निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना ॥ मैं लूंगी. ॥ फाल्गुन मास (झड़ी) सखि आया फाग बड़ भाग, तो होरी त्याग; अठाई लाग के मैना सुन्दर । हरा श्रीपाल का कुष्ट कठोर उदम्बर।। दिया धवल सेठ ने डार, उदधि की धार; तो हो गये पार वे उस ही पल में। अरु जा परणी गुणमाल न डूबे जल में। (झवटें) मिली रैन मंजूषा प्यारी, जिन ध्वजा शील की धारी। परी सेठ पै मार करारी, गया नर्क में पापाचारी॥ (झड़ी) तुम लेखा द्रौपदी सती, दोष नहिं रती; कहे दुर्मती पद्म के बन्धन । हुआ धातकीखण्ड जरूर शील इस खण्डन॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy