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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
(झर्वटें) कीचक ने मन ललचाया, द्रोपदी पर भाव धराया। उसे भीम ने मार गिराया, उन किया तैसा फल पाया।
(झड़ी) फिर गह्या दुर्योधन चीर, हुई दिलगीर; जुड़ गई भीर लाज अति आवै। गये पाण्डु जुये में हार न पार बसावै॥ भये परगट शासन वीर, हरी सब पीर; बधाई धीर पकर लिये चरना। निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना ॥ मैं लूंगी. ॥
फाल्गुन मास
(झड़ी) सखि आया फाग बड़ भाग, तो होरी त्याग; अठाई लाग के मैना सुन्दर । हरा श्रीपाल का कुष्ट कठोर उदम्बर।। दिया धवल सेठ ने डार, उदधि की धार; तो हो गये पार वे उस ही पल में। अरु जा परणी गुणमाल न डूबे जल में।
(झवटें) मिली रैन मंजूषा प्यारी, जिन ध्वजा शील की धारी। परी सेठ पै मार करारी, गया नर्क में पापाचारी॥
(झड़ी) तुम लेखा द्रौपदी सती, दोष नहिं रती; कहे दुर्मती पद्म के बन्धन । हुआ धातकीखण्ड जरूर शील इस खण्डन॥
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