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________________ बारहमासा ( राजुल ) ] मेरे जी में ऐसी आवे महाव्रत धरिये ॥ सब तजूं हार सिंगार, तजूं संसार; क्यों भव-मंझार मैं जी भरमाऊँ । फिर पराधीन तिरिया का जन्म नहीं पाऊँ ॥ (झर्वटें) सब सुन लो राज दुलारी, दुःख पड़ गया हम पर भारी । तुम तज दो प्रीति हमारी, कर दो संयम को त्यारी ॥ (झड़ी) अब आ गया पावस काल, करो मत टाल; भरे सब ताल महा जल बरसे। बिन परसे श्री भगवान मेरा जी तरसे ॥ मैं तज दई तीज सलोन, पलट गई पौन; मेरा है कौन मुझे जग तरना । निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना ॥मैं लूंगी. ॥ भादों मास [ ३३५ (झड़ी) सखि भादों भरे तलाब मेरे, चित्त चाव; करूंगी उछाव से सोलह कारण । करूं दस लक्षण से व्रत के पाप निवारण ॥ करूं रोट तीज उपवास, पंचमी अकास; अष्ट मी खास निशल्य मनाऊँ । तप कर सुगन्ध दशमी कूं कर्म जराऊँ ॥ (झर्वटें) उन केवलज्ञान उपाया, जग का अन्धेर मिटाया । जिसमें सब विश्व समाया, तन-धन सब अथिर बताया ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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