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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह बारह मासा (राजुल का)
(राग मरहरी झड़ी) मैं लूँगी श्री अरहन्त, सिद्ध भगवन्त; साधु, सिद्धान्त चार का शरना। निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना ।टेक॥
आसाढ़ मास
(झड़ी) सखि आया असाढ़ घनघोर भोर चहुँ ओर; मचा रहे शोर, इन्हें समझावो । मेरे प्रीतम की तुम, पवन परीक्षा लावो । है कहाँ मेरे भरतार, कहाँ गिरनार; महाव्रत धार, बसे किस वन में। क्यों बांध मोड़ दिया तोड़ क्या सोची मन में।
(झर्व) तू जा रे पपैया जा रे, प्रीतम को दे समझा रे। रही नौ भव सङ्ग तुम्हारे, क्यों छोड़ दई मझधारे ।
(झड़ी) क्यों बिना दोष, भये रोष, नहीं सन्तोष; यही अफ सोस, बात नहीं बूझी। दिये जादों छप्पन कोड छोड़ क्या सूझी। मोहि राखो चरण मंझार, मेरे भरतार; करो उद्धार, क्यों दे गये झुरना। निर्नेम नेम बिन हमें जगत क्या करना ।|मैं लूंगी. ॥
श्रावण मास
(झड़ी) सखि श्रावण संवर करे, समन्दर भरे; दिगम्बर धरे, जतन क्या करिये।
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