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बारहमासा वज्रदन्त ]
[३३३ (गीत छन्द) धर योग आतापन सुगुरु तब शुक्लध्यान लगाइयो। तिहुँलोक भानु समान केवलज्ञान तिन प्रगटाइयो। वज्रदन्त मुनीश जग तज धर्म के सन्मुख भये। निज काज अरु पर काज करके समय में शिवपुर गये॥५२॥
(चौपाई) सम्यक्त्वादि सुगुण आधार, भये निरंजन निर-आकार। आवागमन तिलांजलि दई, सब जीवन की शुभगति भई ॥५३॥
(गीत छन्द) भई शुभगति सबन की निज शरण जिनपति की लई। पुरुषार्थसिद्धि उपाय से परमारथ की सिद्धी भई । जो पढ़े बारामास भावन भाय चित हुलसाय के। तिनके हों मंगल नित नये अरु विघ्न जाय पलायके ॥५४॥
(दोहा) नित-नित तब मंगल बढ़े, पढ़ें जो यह गुणमाल। सुरगन के सुख भोग कर, पावें मोक्ष रसाल ।।५५ ।।
(सवैया) दो हजार माहितें तिहत्तर घटाय अब
विक्रम को संवत विचार के धरत हूँ। अगहन असि त्रयोदशी मृगांकवार
___ अर्द्धनिशा माहिं याहि पूर्ण करत हूँ। इति श्री वज्रदन्त चक्रवर्ति को वृत्तान्त
रचि के पवित्र नैन आनन्द भरत हूँ। ज्ञानवन्त करो शुद्ध जान मेरी बालबुद्धि
दोष पै न रोष करो पायन परत हूँ॥५६॥
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