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बारहमासा वज्रदन्त ]
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दे कष्ट प्रेत पिशाच आन अङ्गार पाथर डार के । कुल आपने की रीति चालो राजनीति विचार के ॥ २७ ॥
(चौपाई) हे प्रभु बहुत बार दुःख सहे, बिना केवली जाय न कहे। शीत उष्ण नर्कन के तात, करत याद कम्पे भव गात ॥२८॥ ( गीत छन्द)
गात कम्पे नर्क से लहे शीत उष्ण अथाह ही । जहाँ लाख योजन लोह पिण्ड सुहोय जल गल जाय ही ॥ असिपत्र वन के दुख सहे परवस स्ववस तप ना किया । तुम समझ सोई समझ हमरी हमें नृपपद क्यों दिया ॥२९ ॥ (चौपाई) पौष अर्थ अरु लेहु गयंद, चौरासी लख लख सुखकन्द । कोड़ि अठारह घोड़ा लेहु, लाख कोड़ि हल चलत गिनेहु ॥ ३० ॥ ( गीत छन्द)
लेहु हल लख कोड़ि षटखण्ड भूमि अरु नवनिधि बड़ी । लो देश की ये विभूति हमरी राशि रत्नन की पड़ी ॥ धर देहुँ सिर पर छत्र तुमरे नगर धोख उचारिके । कुल आपने की रीति चालो राजनीति विचार के ॥३१॥ (चौपाई)
अहो कृपानिधि तुम परसाद, भोगे भोग सबै मरयाद । अब न भोग की हमकूँ चाह, भोगन में भूले शिवराह ॥ ३२ ॥ (गीत छन्द)
बहुबार सुरगति संचरै ।
राह भूले मुक्ति की जहाँ कल्पवृक्ष सुंगंध सुन्दर अप्सरा मन को हरे ॥
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