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बारहमासा वज्रदन्त ]
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तातें करो मुनिदान - पूजा राज काज सम्भाल के | कुल आपने की रीति चालो राजनीति विचार के ।। १५ ।।
(चौपाई) हम तज भोग चलेंगे साथ, मिटें रोग भव-भव के तात । समता मन्दिर में पग धरै, अनुभव अमृत सेवन करें ॥ १६ ॥ ( गीत छन्द)
करें अनुभव पान आतम ध्यान वीणा कर धरें । आलाप मेघ मल्हार सोहैं, सप्तभंगी स्वर भरें ॥ धृग धृग पखावज भोग कूँ, सन्तोष मन में कर लिया । तुम समझ सोई समझ हमरी, हमें नृप पद क्यों दिया ॥ १७ ॥ (चौपाई)
आसुज भोग तजे नहिं जाहिं, भोगी जीवन को डसि खाहिं । मोह लहर जिय की सुध हरे, ग्यारह गुणथानक चढ़ गिरे ॥ १८ ॥ ( गीत छन्द)
गिरे थानक ग्यारवें से आय मिथ्या भू परे । बिन भाव की थिरता जगत में चतुर्गति के दुख भरे ॥ रहे द्रव्यलिङ्गी जगत में बिन ज्ञान पौरुष हार के । कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के ॥ १९ ॥ (चौपाई) विषय विडार पिता तन कसें, गिर कन्दर निर्जन वन बसें । महामंत्र को लखि परभाव, भोग भुजङ्ग न घालें घाव॥२०॥ ( गीत छन्द)
घालें न भोग भुजङ्ग तब क्यों मोह की लहरा चढ़े। परमाद तज परमात्मा प्रकाश जिन आगम पढ़ें ॥
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