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वन्दूँ मैं जिनन्द परमानन्द के कन्द,
[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
बारहमासा वज्रदन्त
जगवन्द्य विमलेन्दु जड़ ताप हरन कूँ ।
इन्द्र धरणिन्द्र गौतमादिक गणेन्द्र जाहि,
सेवै राव रंक भव सागर तरन कूँ ॥ निर्बन्ध निर्द्वन्द्व दीनबन्धु दया सिन्धु,
करैं उपदेश परमारथ करन कूँ ।
गावैं 'नैनसुखदास' वज्रदन्त बारहमास,
मेटो भगवन्त मेरे जन्म-मरन कूँ ॥१ ॥ (दोहा)
वज्रदन्त चक्रेश की, कथा सुनो मन लाय । कर्म काट शिवपुर गये, बारह भावन भाय ॥२॥ (सवैया) बैठे वज्रदन्त आय अपनी सभा लगाय,
ताके पास बैठे राय बत्तीस हजार हैं।
इन्द्र कैसे भोगसार राणी छाणवे हजार,
पुत्र एक सहस्र महान गुणगार हैं । जाके पुण्य प्रचण्ड से नए हैं बलवंत शत्रु,
हाथ जोड़ मान छोड़ सबै दरबार हैं। ऐसो काल पाय माली लायो एक डाली तामें,
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देखो अलि अम्बुज मरण भयकार है ॥३ ॥ अहो यह भोग महा पाप को संयोग देखो,
डाली में कमल तामें भौंरा प्राण हरे है ।
नाशिका के हेतु भयो भोग में अचेत सारी,
रैन के कलाप में विलाप इन करे हैं ॥
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