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अपूर्व अवसर ]
• [३२३ रहा नहीं परमाणु मात्र का स्पर्श भी, पूर्ण कलङ्क विहीन अडोल स्वरूप हो। शुद्ध निरंजन चेतन मूर्ति अनन्य मय, अगुरु लघु सु अमूर्त सहज पद रूप हो। अविचल अविकल स्वयं सिद्ध गुण गाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१८॥ पूर्व प्रयोगादिक कारण के योग से, ऊर्ध्व गमन हो सिद्धालय सुनिवास हो। सादि अनन्त अनन्त समाधि सुखी सदा, अनन्त दर्शन-ज्ञान अनन्त प्रकाश हो। अविनाशी अधिकार परम पद पाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१९॥ जो जाना सर्वज्ञ देव ने ज्ञान में, उसे न तीर्थङ्कर की वाणी कह सकी। अनुभव गोचर मात्र ज्ञान है यह अरे, उस स्वरूप को किसकी वाणी कह सकी। सब कुछ स्वागत अनुभव से दरशाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा॥२०॥ यही परम पद प्राप्त कर सकूँ ध्यान में, मनन चिन्तवन आत्म मनोरथ रूप को। तो यह निश्चय 'राजचन्द्र' मन में धरो, प्रभु आज्ञा से पाऊँ स्वयं स्वरूप को॥ यही मार्ग जीवन को सफल बनाएगा, समयसार का सार मुझे मिल जाएगा। अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥२१॥
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