________________
३२२]
[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह ज्ञान सूर्य का विमल उजाला छाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१३॥ मोह स्वयंभूरमण उदधि को पार कर, क्षीण मोह गुणस्थान निकट हो जाएगा। वीतराग पूर्ण स्वरूप निज आत्म में, केवल ज्ञान निधान प्रगट हो जाएगा। रागादिक अष्टादश दोष मिटाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१४॥ चार घातिया कर्म नष्ट अब हो गए, भव का बीज मिट इस भव से खो गए। सर्व भाव ज्ञाता दृष्टा सह शुद्धता, कृत कृत्य प्रभु वीर्य ज्ञान निज हो गए। यह सर्वज्ञ स्वरूप मुझे मिल जाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१५॥ वेदनीय आदिक चउ कर्म रहे अभी, जली हुई रस्सीवत छाया मात्र है। देहायुष आधीन रहेंगे जब तलक, आयु पूर्ण टूटता देह का पात्र है। ज्ञान शिरोमणि परम शांत रस पाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१६॥ मन-वच-काया से कर्मों की वर्गणा, छूटे जहाँ सकल पुद्गल सम्बन्ध सब। यही अयोगी गुणस्थान हो जाएगा, महा भाग्य सुखदायक पूर्ण अबन्ध अब ॥ जन्म-मृत्यु से रहित अवस्था पाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org