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अपूर्व अवसर ]
केश रोम नख आदि अङ्ग शृङ्गारना, द्रव्य-भाव संयममय मुनि ज्यों सिद्ध हैं। यह मनुष्य भव सफल अरे हो जाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥९॥ शत्रु मित्र के प्रति वर्तुं समदर्शिता, मान अमान न छोड़ स्वयं स्वभाव का। जन्म-मृत्यु पर हर्ष शोक कुछ हो नहीं, बन्ध मोक्ष के प्रति वर्तुं समभाव को॥ उग्र निर्जरा द्वारा कर्म झराएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१०॥ एकाकी विचरूं निर्जन शमशान में, वन पर्वत में मिलें सिंह संयोग से। आसन रहे अडोल न मन में क्षोभ हो, परम मित्र मम जानें पाये योग से। तत्त्व भावना हृदय रात-दिल भाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥११॥ घोर तपश्चर्या से मन को खेदना, नहीं सरस भोजन से मिले प्रसन्नता। रजकण से लेकर वैमानिक ऋद्धि तक, सब पुद्गल पर्याय रूप की भिन्नता॥ शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध आत्मगुण गाएगा, अपूर्व अवसर ऐसा कब प्रभु आएगा ॥१२॥ इस प्रकार चारित्र मोह को जीत लूँ, आऊँ जहाँ अपूर्व करण का भाव हो। श्रेणी क्षपक चढूँ निज में आरूढ़ हो, नित्य निरंजन अतिशय शुद्ध स्वभाव हो॥
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