SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२] [वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह जहाँ अखण्डित गुन लगे, खेवट शुद्ध विचार। आतम-रुचि-नौका चढ़े ,पावहु भव-जल पार ॥९॥ ज्यों अंकुश मानैं नहीं, महामत्त गजराज। ज्यों मन तिसना में फिरैं, गिनै न काज अकाज ॥१०॥ ज्यों नर दाव उपाय कैं, गहि आ. गज साधि। त्यों या मन बस करन कों, निर्मल ध्यान समाधि ॥११॥ तिमिर-रोगसों मैंन ज्यों,लखै और को और। त्यों तुम संशय में परे, मिथ्यामति की दौर ॥१२॥ ज्यों औषध अञ्जन किये, तिमिर-रोग मिट जाय। त्यों सतगुरु उपदेशतें, संशय वेग विलाय ॥१३॥ जैसे सब यादव जरे, द्वारावति की आगि। त्यों माया में तुम परे, कहाँ जाहुगे भागि ॥१४॥ दीपायन सों ते बचे, जे तपसी निरग्रन्थ। तजि माया समता गहो, यहै मुकति को पन्थ ॥१५॥ ज्यों कुधातु के फेट सों, घट-बढ़ कंचन कान्ति। पाप-पुन्य कर त्यों भये, मूढातम बहु भाँति ॥१६॥ कंचन निज गुन नहिं तजै, हीन बान के होत। घट-घट अन्तर आतमा, सहज-सुभाव उदोत ॥१७॥ पन्ना पीट पकाइये, शुद्ध कनक ज्यों होय। त्यों प्रगटै परमातमा, पुण्य-पाप-मल खोय ॥१८॥ पर्व राहु के ग्रहण सों, सूर-सोम छवि-छीन। संगति पाय कुसाधु की, सज्जन होय मलीन ॥१९॥ निम्बादिक चन्दन करै, मलयाचल की बास। दुर्जन” सज्जन भयें, रहत साधु के पास ॥२०॥ जैसें ताल सदा भरें, जल आवै चहुँ ओर । तैसें आत्रव-द्वारसों, कर्म-बन्ध को जोर ॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy