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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
जातपना दो विध लसै, विषय - निर्विषय- भेद । निरविषयी संवर लसैं, विषयी आस्रव वेद ॥ ३६ ॥ प्रथम जीव श्रद्धान सों, कर वैराग्य उपाय । ज्ञान किये सों मोक्ष है, यही बात सुखदाय ॥३७॥ पुद्गल सों चेतन बँध्यो, यही कथन है हेय । जीव बँध्यो निज भाव सों, यही कथन आदेय ॥३८॥ बन्ध लखेँ निज और से, उद्यम करै न कोय । आप बँध्यो निजसों समझ, त्याग करै शिव होय ॥३९ ॥ यथा भूप को देख कै, ठौर रीति को जान । तब धन अभिलाषी पुरुष, सेवा करैं प्रधान ॥४० ॥ तथा जीव सरधानकर, जानैं गुण- परजाय । सबै जु शिव-धन आशधर, समता सों मिल जाय ॥४१॥ तीन भेद व्यवहार सों, सर्व जीव सब ठाम । श्री अरहत परमात्मा, निश्चय चेतनराम ॥४२ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म रति, अहंबुद्धि सब ठौर । हित अनहित सरधैं नहीं, मूढ़न में शिरमौर ॥४३ ॥ आप आप पर पर लखै, हेय उपादे ज्ञान । अब तो देशव्रती महा - व्रती सबै मतिज्ञान ॥४४ ॥ जा पद मैं यह पद लसै, दर्पन ज्यों अविकार । सकल निकल परमात्मा, नित्य निरञ्जन सार ॥४५ ॥ बहिरातम के भाव तजि, अन्तर आतम होय । परमातम ध्यावै सदा, परमातम सो होय ॥४६ ॥ बूँद उदधि मिलि होत दधि, बीती फरश प्रकाश । त्यों परमातम होत है, परमातम अभ्यास ॥४७॥
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