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आत्मबोध ]
[ २९७ तातें शिव अभिलाषी जेह, आतम निश्चय प्रथम करेह। जो पर पर्यय रूप विकल्प, वर्जित चितगुण सहित अनल्प ॥४॥ सोहे त्रिविध आतमाराम, सर्व भूतथित निज गुणधाम। बहिरातम अन्तर आतमा, परमातम जानो अनुपमा ॥५॥ जाकी देहादिक पर माँहि, आतमबुद्धि भरम निज छाँह। सो जानो बहिरातम कूर, मोह नींद सोवे भरपूर ॥६॥ परभावन तें होय उदास, आप आप में रुचि है जास। सो अन्तर आतम बुध कहे, जे भ्रम तम हर निजगुण लहे ॥७॥ निर्मल निकल शुद्ध निष्पन्न, सर्वकल्प वर्जित चैतन्य। शुद्धातम परमातम सोय, ज्ञानमूर्ति भाष मुनिलोय ॥८॥
(प्रश्न) लख के देहादिकतें भिन्न, शुद्ध अतीन्द्रिय चेतनचिह्न। आतम तत्त्व अमूरत तास, कैसे करें ध्यान अभ्यास? ॥९॥
(उत्तर) तजके बहिरातमता मित्त, अन्तरातमा होय सुचित । ध्यावहु परमातम अति शुद्ध, अव्यय शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध ॥१०॥ तन चेतन को जाने एक, बहिरातम शठ रहित विवेक। ज्ञानी जीव अनुभवे भिन्न, देहादिकतें निज चित चिन्न ॥११॥ आतम तत्त्व विमुख अत्यन्त, करण विषय चल परिणतिवंत। बहिरातम अज्ञानी जीव, तन को आतम लखै सदीव॥१२॥ सुर नर पशु नारक पर्याय, नामकर्म के उदय लहाय। निज को सुन नर पशु नारकी, जाने मूढ़ अविद्या थकी॥१३॥ स्वसंवेद्य निजरूप चिदंक, जो भाषों जिनवर निकलंक। सो नहिं जानें अक्षातीत, सदा अमूरत देव पुनीत ॥१४॥ च्युत चेतन निज तन में जेम, माने सठ आपो कर प्रेम। त्यों ही देख परायी देह, पर आतम मानें भ्रम गेह ॥१५॥
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