________________
२७४]
[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह कमला चले नहिं पैंड, मुख ढाकै परिवारा। देह थकैं बहु पोष, क्यों न लखै संसारा॥१॥ छिन नहिं छोड़े काल, जो पाताल सिधारै । वसे उदधि के बीच, जो बहु दूर पधारै । गण-सुर राखै तोहि, राखै उदधि-मथैया। तोहु तजै नहिं काल, दीप पतंग ज्यों पड़िया ॥२॥ घर गौ सोना दान, मणि औषधि सब यों ही। यंत्र मंत्र कर तंत्र, काल मिटै नहिं क्यों ही॥ नरक तनो दुख भूर, जो तू जीव सम्हारे । तो न रुचै आहार, अब सब परिग्रह डा ॥३॥ चेतन गर्भ मंझार, वसिके अति दुख पायो। बालपने को ख्याल सब जग प्रगटहि गायो। छिन में तन को सोच, छिन में विरह सतावै। छिन में इष्ट वियोग, तरुण कौन सुख पावै॥४॥
चौथी ढाल जरापने जो दुख सहे, सुन भाई रे। ___ सो क्यों भूले तोहि, चेत सुन भाई रे। जो तू विषयों से लगा, सुन भाई रे। ___आतम सुधि नहिं तोहि, चेत सुन भाई रे ॥१॥ झूठ वचन अघ ऊपजै, सुन भाई रे।
गर्भ बसो नवमास, चेत सुन भाई रे। सप्त धातु लहि पाप से, सुन भाई रे।
अबहू पाप रताय चेत सुन भाई रे ॥२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org