________________
छहढाला
[२७५ नहीं जरा गद आय है, सुन भाई रे।
कहाँ गये यम यक्ष वे,सुन भाई रे। जे निश्चिन्तित हो रह्यो,सुन भाई रे।
सो सब देख प्रत्यक्ष चेत सुन भाई रे॥३॥ टुक सुख को भवदधि पड़े, सुन भाई रे।
पाप लहर दुखदाय, चेत सुन भाई रे। पकड़ो धर्म जहाज को, सुन भाई रे।
सुख से पार करेय,सुन भाई रे ॥४॥ ठीक रहे धन सास्वतो, सुन भाई रे।
होय न रोग न काल, चेत सुन भाई रे उत्तम धर्म न छोड़िये,सुन भाई रे।
धर्म कथित जिन धार, चेत सुन भाई रे ॥५॥ डरपत जो परलोक से, सुन भाई रे।।
चाहत शिव सुखसार, चेत सुन भाई रे। क्रोध लोभ विषयन तजो, सुन भाई रे।
कोटि कटै अघजाल, चेत सुन भाई रे ॥६॥ ढील न कर, आरम्भ तजो, सुन भाई रे ।
आरम्भ में जिय घात, चेत सुन भाई रे। जीवघात से अघ बढ्, सुन भाई रे।
अघ से नरक लहात, चेत सुन भाई रे ॥७॥ नरक आदि त्रैलोक में सुन भाई रे।
ये परभव दुख राशि, चेत सुन भाई रे। सो सब पूरब पाप से, सुन भाई रे।
सबहि सहै बहु त्रास, चेत सुन भाई रे ॥८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org