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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह सन्धि विहीन ध्वनि सुनकर उस परिषद को आश्चर्य महान।
और दिखे तत्काल महामुनि मूर्तिमन्त अध्यात्म समान ॥६१ ॥ हाथ जोड़कर खड़े प्रभु को नमें भक्ति में लीन हुए। नग्न दिगम्बर छोटा-सा तन विस्मित थे सब लोग हुए। विस्मय से चक्री पूछे हे नाथ! कहो ये कौन महान। हैं समर्थ आचार्य भरत के करें धर्म की वृद्धि महान ॥६२॥
(दोहा) जिनवर की यह बात सुन, हर्षित सकल समाज। ऐलाचार्य सभी कहें, छोटे से मुनिराज ॥६३ ॥
भरत क्षेत्र में पुनरागमन (हरिगीत) प्रत्यक्ष जिनवर दर्श कर बहु हर्ष ऐलाचार्य को। ॐ कार ध्वनि सुनकर अहो अमृत मिला मुनिराज को॥ सप्ताह एक ध्वनि सुनी श्रुत केवली परिचय किया। शंका निवारण सभी कर फिर भरत पुनरागम हुआ॥६४॥
__ आचार्य कुन्दकुन्द की महिमा (रोला आडिल्ल) गुरु परम्परा से जो वीर ध्वनि है पाई। जा विदेह दिव्यध्वनि झेली खुद भी भाई॥ मुनिवर ने है वही लिखा इन परमागम में। कुन्दकुन्द का अति उपकार भरत भूतल में॥६५ ।। हो सुपुत्र तुम भरत क्षेत्र के अन्तिम जिन के॥ महाभक्त हो क्षेत्र विदेह प्रथम जिनवर के॥ हो सुमित्र भव में भूले हम भव्य जनों के। कुन्कुन्द को बार बार वन्दन हम करते ॥६६॥
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