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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
परमार्थ-शरण अशरण जग में शरण एक शुद्धातम ही भाई। धरो विवेक हृदय में आशा पर की दुखदाई ॥१॥ सुख दुख कोई न बाँट सके यह परम सत्य जानो। कर्मोदय अनुसार अवस्था संयोगी मानो ॥२॥ कर्म न कोई देवे लेवे प्रत्यक्ष ही देखो। जन्म मरे अकेला चेतन तत्त्वज्ञान लेखो ॥३॥ पापोदय में नहीं सहाय का निमित्त बने कोई। पुण्योदय में नहीं दण्ड का भी निमित्त होई ॥४॥ इष्ट अनिष्ट कल्पना त्यागो हर्ष विषाद तजो। समता धर महिमामय अपना आतम आप भजो ॥५॥ शाश्वत सुखसागर अन्तर में देखो लहरावे। दुर्विकल्प में जो उलझे वह लेश न सुख पावे ॥६॥ मत देखो पर्यायों को गुण-भेद नहीं देखो॥ मत देखो संयोगों को कर्मोदय मत देखो ॥७॥ अहो देखने योग्य एक ध्रुव ज्ञायक प्रभु देखो। हो अन्तर्मुख सहज दीखता अपना प्रभु देखो ॥८॥ देखत होय निहाल अहो निज परम प्रभू देखो। पाया लोकोत्तम जिनशासन आतमप्रभु देखो॥९॥ निश्चय नित्यानन्दमयी अक्षय पद पाओगे। दुखमय आवागमन मिटे भगवान कहाओगे ॥१०॥
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