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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
क्षणभंगुरता पर्यायों की लखकर मोह निवारो । अरे जगतजन द्रव्यदृष्टि धर, अपनो रूप संभारो ॥ १९ ॥ क्षमाभाव है सबके ही प्रति, सावधान हूँ निज में । पाने योग्य स्वयं में पाया, सहज तृप्त हूँ निज में ॥२०॥ साम्यभाव धरि कर्म विडारूँ, अपने गुण प्रगटाऊँ । अनुपम शाश्वत प्रभुता पाऊँ, आवागमन मिटाऊँ ॥२१॥ (दोहा)
शान्त हुआ कृतकृत्य हुआ, निर्विकल्प निज माँहि । तिष्ठ परमानन्दमय, अविनाशी शिव माँहि ॥
समाधिमरण पाठ
गौतम स्वामी वन्दों नामी मरण समाधि भला है। मैं कब पाऊँ, निशदिन ध्याऊँ, गाऊँ वचन कला है ॥ देव-धर्म-गुरु प्रीति महादृढ़ सप्त व्यसन नहिं जाने । त्याग बाईस अभक्ष्य संयमी बारह व्रत नित ठाने ॥१ ॥ चक्की उखरी चूलि बुहारी पानी त्रस न विराधै । बनिज करै परद्रव्य हरै नहिं छहों करम इमि साधै ॥ पूजा शास्त्र गुरुन की सेवा संयम तप चहु दानी । पर- उपकारी अल्प-अहारी सामायिक-विधि ज्ञानी ॥२॥ जाप जपै तिहुँ योग धरै दृढ़ तन की ममता टारै । अन्त समय वैराग्य सम्हारै ध्यान समाधि विचारै ॥ आग लगै अरु नाव डुबे जब धर्म विघन है आवे । चार प्रकार अहार त्याग के मंत्र सु मन में ध्यावै ॥३ ॥ रोग असाध्य जहाँ बहु देखै कारण और निहारै । बात बड़ी है जो बनि आवै भार भवन को डारै ॥
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