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समाधिमरण पाठ ]
[ १९५ जो न बने तो घर में रहकरि सब सों होय निराला। मात पिता सुत तिय को सौंपे निज परिग्रह अहि काला ॥४॥ कुछ चैत्यालय कुछ श्रावकजन कुछ दुखिया धन देई। क्षमा क्षमा सबही सों कहिके मन की शल्य हनेई । शत्रुन सों मिल निज कर जोरै मैं बहु कीनि बुराई। तुमसे प्रीतम को दुख दीने ते सब बकसो भाई ।।५।। धन धरती जो मुख सों मांगै सो सब दे सन्तोषै। छहों काय के प्राणी ऊपर करुणा भाव विशेषै। ऊँच नीच घर बैठ जगह इक कुछ भोजन कुछ पय लै। दूधाहारी क्रम-क्रम तजि के छाछ अहार गहे लै ॥६॥ छाछ त्यागि के पानी राखे पानी तजि संथारा। भूमि माहिं थिर आसन मांडै साधर्मी ढिंग प्यारा॥ जब तुम जानो यह न जपै है तब जिनवाणी पढ़िये। यों कहि मौन लेय संन्यासी पंच परमपद गहिये।७॥ चौ आराधना मन में ध्यावै बारह भावन भावै। दश लक्षणमय धर्म विचारै रत्नत्रय मन ल्यावै॥ पैंतीस सोलह षट पन चार अरु दुई इक वरन विचारै। काया तेरी दुख की ढेरी ज्ञानमयी तू सारै ॥८॥ अजर अमर निज गुण सों पूरै परमानन्द सुभावै। आनन्द कन्द चिदानन्द साहब तीन जगतपति ध्यावै। क्षुधा तृषादिक होय परीषह सहै भाव सम राखै। अतीचार पाँचों सब त्यागै ज्ञान सुधारस चाखै ॥९॥ हाड़ माँस सब सूखि जाय जब धरम लीन तन त्याग। अद्भुत पुण्य उपाय सुरग में सेज उठै ज्यों जागै॥ तहते आवे शिवपद पावे विलसै सुक्ख अनन्तो। 'द्यानत' यह गति होय हमारी जैन धरम जयवन्तो॥१०॥
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