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श्री देशभूषण-कुलभूषण गाथा]
[१७९ ऐसा विचार करते ही सब खेद मिट गया। अक्षय मुक्ति के मार्ग का फिर, द्वार खुल गया। अज्ञानी पश्चात्ताप की अग्नि में जलते हैं। ज्ञानी तो दोष लगने पर प्रायश्चित्त करते हैं। शुद्धात्म आश्रित भावमय प्रायश्चित्त प्रगटाओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ॥१३॥ हम कर्म के प्रेरे बहिन, दुर्भाव कर बैठे। अज्ञानवश निज शील का उपहास कर बैठे। करना क्षमा हम ज्ञानमय दीक्षा को धरेंगे। अज्ञानमय दुष्कर्मों को निर्मूल करेंगे। समता का भाव धार कर कुछ खेद नहिं लाओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥१४॥ रोको नहीं तुम भी बहिन, आओ इस मार्ग में। दुर्मोहवश अब मत बढ़ो संसार मार्ग में। निस्सार है संसार बस शुद्धात्मा ही सार।
अक्षय प्रभुता का एक ही है आत्मा आधार ॥ निर्द्वन्द्व निर्विकल्प हो निज आत्मा ध्याओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ॥१५॥ ले के क्षमा करके क्षमा, गुरु ढिंग चले गये। आया था राग घर का, ज्ञानी वन चले गये। संग में चले निर्मोही, रागी देखते रहे। धारा था जैन तप, उपसर्ग घोर थे सहे॥ पाया अचल, ध्रुव सिद्ध पद भक्ति से सिरनाओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ॥१६॥
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