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[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह
आते देखा भ्राताओं को वह कन्या हरषायी । भाई भाई कहती हुई, नजदीक में आई ॥ तब समझा यह तो बहिन है जिस पर ललचाये थे । ग्लानि मन में ऐसी हुई, कुछ कह नहिं पाये थे ॥ नाशा विकार ज्ञान से, प्रत्यक्ष लखाओ । आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥९ ॥ ज्यों ही जाना हम भाई हैं, यह तो पावन भगिनी । फिर कैसे जागृत हो सकती है, वासना अग्नि ॥ त्यों ही मैं ज्ञायक हूँ ऐसी अनुभूति जब होती ॥ तब ही रागादिक परिणति तो सहज ही खोती ॥ अतएव स्वानुभूति का पुरुषार्थ जगाओ । आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥१० ॥ अज्ञान से उत्पन्न दुख तो ज्ञान से नाशे । अस्थिरता जन्य विकार भी थिरता से विनाशे ॥ भोगों के भोगने से इच्छा शान्त नहीं होती । अग्नि में ईंधन डालने सम शक्ति ही खोती ॥ अतएव सम्यग्ज्ञान कर, संयम को अपनाओ । आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥११॥ दोनों कुमार सोचते थे, प्रायश्चित्त सुखकर। इसका यही होवेगा, हम तो होंय दिगम्बर ॥ दुनिया की सारी स्त्रियाँ, हम बहिन सम जानी । आराधें निज शुद्धात्मा दुर्वासना हानी || निष्काम आनंदमय परम जिनमार्ग में आओ। आनन्द से उल्लास से शिवमार्ग में आओ ॥१२ ॥
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