________________
१७०]
[ वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह मंगलमय ऐसे अवसर में, आलूँ ना बहाओ। आनंदमय जिनमार्ग, कुछ विकल्प मत लाओ। आदर्श रूप नेमि प्रभु का अनुसरण करो। परभावों से है भिन्न आतम अनुभवन करो। होता नहीं स्त्री-पुरुष व क्लीव आत्मा। ध्रुव एक रूप ज्ञानमय है शुद्ध आत्मा ।। परमार्थ प्रतिक्रमण करो, सहज भाव से। प्रभु सम ही भाऊँ भावना, छू, विभाव से॥९॥ कुछ मोहवश संकोचवश, भवि चूक ना जाना। साधो परम उत्साह से, शंका नहीं लाना । उत्कृष्ट समयसार से, कुछ अन्य नहीं है। अनुभव प्रमाण स्वयं करो, धोखा नहीं है। शुद्धात्मा के ध्यान में, सब कर्म नशायें। आत्मा बने परमात्मा गुण सर्व विलसायें। अनुभूत-मग दर्शाया प्रभु, वीतरागभाव से। प्रभु सम ही भाऊँ भावना, छूटू विभाव से॥१०॥ सम्बोधन करके यों राजुल, गिरनार को गई। वन्दन कर नेमिनाथ को, वह आर्यिका हुई। नेमीश्वर तो मुक्ति गये, वह स्वर्ग को गई। पावन गाथा वैराग्यमयी विख्यात है हुई। प्रेरित करे भव्यों को, सम्यक् निवृत्ति मार्ग में। मैं भी विचरूँ साक्षात् प्रभु निर्ग्रन्थ मार्ग में। हो सहज सफल भावना अंतरंग भाव से। प्रभु सम ही भाऊँ भावना, छू, विभावे से॥११॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org