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[वृहद् आध्यात्मिक पाठ संग्रह विमल विमलमति देत अंतगत हैं अनंत जिन। धर्मशर्म शिवकरण शांतिजिन शांतिविधायिन ॥१८॥ कुंथकुंथुमुख जीवपाल अरनाथजाल हर। मल्लि मल्लसम मोहमल्लमारन प्रचार धर ॥ मुनिसुव्रत व्रतकरण नमत सुरसंघ हि नमि जिन। नेमिनाथ जिननमि धर्म रथमाहिं ज्ञानधन ॥१९॥ पार्श्वनाथ जिन पार्श्व उपलसम मोक्षरमापति। वर्द्धमान जिन नमूं व| भवदुःख कर्मकृत। या विधि में जिन संघरूप चौबीस संख्यधर। स्तवू नयूँ हूँ बार-बार बंदूं शिव सुखकर ॥२०॥
॥ पंचम वन्दना कर्म॥ वन्दूँ मैं जिनवीर धीर महावीर सुसन्मति । वर्द्धमान अतिवीर वन्दिहूँ मन-वच-तनकृत ॥ त्रिशलातनुज महेशधीश विद्यापति वन्दूँ। . वन्दूँ नितप्रति कनकरूप तनु पाप निकन्दूँ॥२१॥ सिद्धारथनृपनंद द्वन्द दुःख दोष मिटावन। दुरित दवानल ज्वलित ज्चाल जग जीव उधारन॥ कुण्डलपुर करि जन्म जगत जिय आनन्द कारन। वर्ष बहत्तर आयु पाय सब ही दुःख टारन ॥२२ सप्त हस्त तनु तुङ्ग भङ्गकृत जन्म मरण भय। बालब्रह्ममय ज्ञेय हेय आदेय ज्ञानमय ॥ दे उपदेश उधारि तारि भवसिंधु जीवघन। आप बसे शिव माहिं ताहि वंदों मन-वच-तन ॥२३॥ जाके वंदन थकी दोष दुख दूरहि जावें। जाके वंदन थकी मुक्तितिय सन्मुख आवै॥
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