________________
सामायिक पाठ
]
सामायिक पाठ भाषा
॥ प्रथम प्रतिक्रमण कर्म ॥
काल अनन्त भ्रम्यो जग में सहिये दुख भारी । जन्म-मरण नित किये पापको है अधिकारी ॥ कोटि भवान्तर माहिं मिलन दुर्लभ सामायिक । धन्य आज मैं भयो योग मिलियो सुखदायक ॥१॥ हे सर्वज्ञ जिनेश! किये जे पाप जु मैं अब । ते सब मन-वच-काय योग की गुप्ति बिना लभ ॥ आप समीप हजूर माहिं मैं खड़ो खड़ो सब । दोष कहूँ सो सुनो करो नठ दुःख देहिं जब ॥२ ॥ क्रोध मान मद लोभ मोह माया वशि प्रानी । दुःखसहित जे किये दया तिनकी नहिं आनी ॥ बिना प्रयोजन एकेन्द्रिय विति चउ पञ्चेन्द्रिय । आप प्रसादहिं मिटै दोष जो लग्यो मोहि जिय ॥३ ॥ आपस में इकठौर थापकरि जे दुख दीने । पेलि दिए पगत दाबि करि प्राण हरीने ॥ आप जगत के जीव जिते तिन सब के नायक । अरज करूँ मैं सुनो दोष मेटो दुखदायक ॥४ ॥ अंजन आदिक चोर महा घनघोर पापमय । तिनके जे अपराध भये ते क्षमा क्षमा किय ॥ मेरे जे अब दोष भये ते क्षमहु दयानिधि | यह पडिकोणो कियो आदि षट् कर्म माहिं विधि ॥५ ॥
॥ द्वितीय प्रत्याख्यान कर्म ॥
जो प्रमादवशि होय विराधे जीव घनेरे । तिनको जो अपराध भयो मेरे अघ ढ़ेरे ||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
[ १५५
www.jainelibrary.org