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________________ स्वरूपसंबोधन स्तोत्र [१३७ तरह वह परमात्मा ज्ञानमात्र है और ज्ञानमात्र नहीं भी है अर्थात् ज्ञानगुण को मुख्य करके व अन्य समस्त गुणों को गौण करके यदि विचारा जाय तो आत्मा या परमात्मा में ज्ञानमात्र ही दृष्टि में आता है और यदि अन्य गुणों को मुख्य किया जाय तो ज्ञानमात्र दृष्टि में नहीं भी आता है । इसी तरह जब केवल ज्ञान के द्वारा सम्पूर्ण लोक व अलोक को जानने को अपेक्षा लेते हैं, तब परमात्मा को सर्वगत भी कह सकते हैं, क्योंकि सम्पूर्ण पदार्थ परमात्मा से गत है अर्थात् ज्ञात है और सम्पूर्ण पदार्थों को जानते हुए भी अरहंत परमात्मा अपने दिव्य औदारिक शरीर में ही स्थित रहता है, इसलिए वह विश्वव्यापी नहीं भी है।।५॥ उस आत्मा में मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि अनेक ज्ञान होते हैं तथा और भी सम्यक्त्व, चारित्र आदि अनेक गुण होते हैं, जिनके कारण यह आत्मा यद्यपि अनेक रूप हो रहा है तथापि अपने चेतन स्वरूप की अपेक्षा एकपने को नहीं छोड़ता; इसलिए इस आत्मा को कथञ्चित् एक रूप भी जानना चाहिये और कथञ्चित् अनेक रूप भी जानना चाहिये॥६॥ वह आत्मा अपने स्वरूप अपेक्षा वक्तव्य (कहे जाने योग्य) भी नहीं है, और पर पदार्थों के स्वरूप की अपेक्षा अवक्तव्य होने से सर्वथा वक्तव्य भी नहीं है ॥७॥ वह आत्मा अपने धर्मों का विधान करने वाला प अन्य पदार्थों के धर्मों का अपने में निषेध करने वाला है और ज्ञान के आकार होने से वह आत्मा मूर्तिक तथा पुद्गलमय शरीर से भिन्न होने के कारण अमूर्तीक है ॥८॥ इस प्रकार पहले कहे हुए क्रम के अनुसार यह आत्मा अनेक धर्मों को धारण करता है और उन धर्मों के फलस्वरूप, बंध व मोक्षरूप फल को भी उन-उन कारणों से स्वयं अपनाता है।।९। जो आत्मा बाह्य शत्रु-मित्र आदि व अंतरंग राग-द्वेष आदि कारणों से ज्ञानावरणादिक कर्मों का कर्ता व उनके सुख-दुःखादि फलों का भोक्ता है, वही आत्मा बाह्य स्त्री, पुत्र, धन, धान्यादिका त्याग करने से कर्मों के कर्ता भोक्तापने के व्यवहार से मुक्त भी है। अर्थात् जो संसारदशा में कर्मों का कर्ता व भोक्ता है, वही मुक्तदशा में कर्मों का कर्ता-भोक्ता नहीं भी है ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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