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________________ स्वयंभू स्तोत्र ] [ ९९ श्री विमलनाथ जिन-स्तुति (भुजंगप्रयात छन्द) नित्यत्व अनित्यत्व नयवाद सारा, अपेक्षा बिना आप पर नाशकारा। अपेक्षा सहित है स्व पर कार्यकारी, विमलनाथ तुम तत्त्व ही अर्थकारी ॥६१ ॥ यथा एक कारण नहीं कार्य करता, सहायक उपादान से कार्य सरता। तथा नय कथन मुख्य गौणं करत है, विशेष वा सामान्य सिद्धि करत है ॥६२ ॥ हर एक वस्तु सामान्य विशेष, अपेक्षा कृतं भेद अभेदं सुलेखं। यथा ज्ञान जग में वही है प्रमाणं, लखे एक हम आप पर तुम बखानं ॥६३ ॥ वचन है विशेषण उसी वाच्य का ही, जिसे वह नियम से कहे अन्य नाहीं। विशेषण विशेष्य न हो अति प्रसंग, जहां स्यात् यह हो न हो अन्य संग ॥६४॥ यथा लोह रसबद्ध हो कार्य कारी, तथा स्यात् सुचिह्नित सुनय कार्यकारी। कहा आपने सत्य वस्तु स्वरूपं, मुमुक्षु भविक वन्दते आप रूपं ॥६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003172
Book TitleBruhad Adhyatmik Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Devlali
PublisherKundkundswami Swadhyaya Mandir Trust Bhind
Publication Year2008
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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