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[ ९३
स्वयंभू स्तोत्र ]
श्री शीतलनाथ जिन-स्तुति
(स्रग्विणी छन्द) तव अनघ वाक्य किरणें, विशद ज्ञानपति,
शान्त-जल-पूरिता, शमकरा सुष्ठुमति । है तथा शम न चन्दन, किरण चन्द्रमा,
नाहिं गंगा जलं, हार मोती शमा ॥४६॥
अक्ष सुख चाह की आग से तप्त मन,
ज्ञान-अमृत-सुजल सींच कीना शमन। वैद्य जिम मन्त्र गुण से करे शान्त तन,
सर्व विष की जलन से हुआ बेयतन ॥४७॥
भोग की चाह अर चाह जीवन करे,
___ लोक दिन श्रम करे रात्रि को सो रहे। हे प्रभु आप तो रात्रि दिन जागिया,
मोक्ष के मार्ग को हर्षयुत साधिया।॥४८॥
पुत्र धन और परलोक की चाह कर,
मूढ़ जन तप करें आपको दाह कर। आपने तो जरा जन्म के नाश हित,
सर्व किरिया तजी शान्तिमय भावहित ॥४९॥
आप ही श्रेष्ठ ज्ञानी महा हो सुखी,
आपसे जो परे बुद्धि लव मद दुखी। याहितें मोक्ष की भावना जे करें,
सन्तज़न नाथ शीतल तुम्हें उर धरे॥५०॥
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