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दीक्षा को धरेंगे। निर्मूल निर्मूल करेंगे ॥
को
करना क्षमा हम ज्ञानमय अज्ञानमय दुष्कर्मों को समता का भाव धार कर कुछ खेद नहिं लाओ ।। आनन्द... ॥१४॥ रोको नहीं तुम भी बहिन, आओ इस मार्ग में । दुर्मोह वश अब मत बढ़ो संसार मार्ग में ॥ निस्सार है संसार बस शुद्धात्मा ही सार । अक्षय प्रभुता का एक ही है आत्मा आधार ॥ निर्द्वन्द निर्विकल्प हो निज आत्मा ध्याओ | ले के क्षमा करके क्षमा, गुरु ढिंग चले आया था राग घर का, ज्ञानी वन चले संग में चले निर्मोही, रागी देखते धारा था जैन तप, उपसर्ग घोर थे सहे ॥
आनन्द... ॥ १५ ॥
रहे।
पाया अचल, ध्रुव सिद्धपद भक्ति से सिर नाओ || आनन्द... ||१६|| सती अनन्तमती गाथा
ब्रह्मचर्य की अद्भुत महिमा, सुनो भव्यजन ध्यान से । सती शिरोमणि अनन्तमती, की गाथा जैन पुराण से || टेक || बहुत समय पहले चम्पानगरी में, प्रियदत्त सेठ हये । न्यायवान गुणवान बड़े, धर्मात्मा अति धनवान थे वे ॥ पुत्री एक अनन्तमती, इनकी प्राणों से प्यारी थी । संस्कारों में पली परम विदुषी रुचिवंत दुलारी थी | सदाचरण की दिव्य मूर्ति निज उन्नति करती ज्ञान से ॥ सती ... ॥ १ ॥ मंगलपर्व अठाई आया, श्री मुनिराज पधारे थे । स्वानुभूति में मग्न रहे, अरु अद्भुत समता धारे थे | धर्मकीर्ति मुनिराज धर्म का, मंगल रूप सुनाया था । श्रद्धा, ज्ञान, विवेक, जगा, वैराग्य रंग बरसाया था || धन्य-धन्य नर-नारी कहते, स्तुति करते तान से || सती ... ॥२॥
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