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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
शृंगार बिन स्वामी स्वयं ही, जगत के श्रृंगार हो । ध्रुव श्रेय पाया नाथ, मेरी वंदना अविकार हो । श्री वासुपूज्य भगवान
चक्र से या वज्र से भी, मोह जो नशता नहीं । जिननाथ तव उपदेश से, दुर्मोह नाशे सहज ही ॥ इन्द्रादि से भी पूज्य स्वामिन्, वासुपूज्य सु नाम है। सहज पूज्य स्वभाव पाया, नाथ सहज प्रणाम है || श्री विमलनाथ भगवान
स्नान बिन निर्मल हुए, प्रभु आप सहज स्वभाव से । स्वयं छूटे कर्ममल, विभु आत्मध्यान प्रभाव से ॥ विमल जिनवर दर्श करते, भेदज्ञान हृदय जगा । भ्रान्ति विघटी शान्ति प्रगटी, भाव अति निर्मल भया । श्री अनन्तनाथ भगवान
बसे सादि अनंत शिव में, परम आनन्द रूप हो । प्रगटे अनन्त सुगुण जिनेश्वर, रहो ज्ञाता रूप हो ॥ प्रभुता अनन्त सुज्ञान में भी, अनंत ही प्रतिभासती । प्रभु अनन्त सुदर्श से, महिमा अनन्त प्रकाशती ॥ श्री धर्मनाथ भगवान
जिन धर्म पाया भाग्य से, आनंद अपरम्पार है। दीखे स्वयं में ही अहो, अक्षय विभव भंडार है || निन्दा करें या त्रास दें जन, धर्म नहीं छोडूं प्रभो । हे धर्मनाथ जिनेन्द्र दुःखमय, बन्ध सब तोडूं विभो ॥ श्री शान्तिनाथ भगवान
जन्म क्षण में ही जगत में, सहज ही साता हुई । सहस्र नेत्रों देखते, नहीं इन्द्र को तृप्ति हुई || विभव चक्री का प्रभो निस्सार जाना आपने । शान्तिजिन ! सुखशान्तिमय, निजपद प्रकाशा आपने ॥
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