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________________ 90 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री पद्मप्रभ भगवान स्वर्ण विरचित पंकजों की, पंक्ति प्रभो चरणों तले। शोभती सु विहार काले, और बहु अतिशय धरे। पद्मवत् निर्लिप्त मुद्रा, मुक्ति पथ दरशावती । पद्मप्रभ तुमको निरखते, याद अपनी आवती ।। श्री सुपार्श्वनाथ भगवान हे सुपार्श्व जिनेन्द्र तेरा, स्तवन कैसे करूँ। गुण अनन्त अहो अलौकिक, आदि अन्त नहीं लखू।। वचन में आवे नहीं, चिन्तन न पावे पार है। स्वानुभवमय भक्ति वर्ते, वंदना अविकार है।। श्री चन्द्रप्रभ भगवान सुधा झरती शांत मूरति, चन्द्रप्रभ अति सोहनी। मोहनाशक दिव्यध्वनि, स्वामी परम मनमोहिनी ।। चन्द्र किरणों के परस से, सिन्धु ज्यों उछले प्रभो। उछले परम आनन्द सागर, सहज दरशन से विभो॥ श्री पुष्पदंत भगवान हे प्रभो ! अध्यात्म विद्या, दिव्यध्वनि से तुम कही। पुष्पदन्त जिनेन्द्र मुक्ति, की सुविधि भविजन लही ।। नाम सार्थक सुविधिनाथ, स्वपद भनँ अतिचाव से। निश्चिंत हूँ निर्द्वन्द्व हूँ रुचि लगी सहज स्वभाव से। श्री शीतलनाथ भगवान आधि-व्याधि-उपाधिमय, भवताप से तपता रहा। अहो! शीतलनाथ मम उर, दर्श से शीतल भया।। परम शीतल तत्त्व, निज शुद्धात्मा पाया अहा। तृप्त निज में ही रहूँ, संताप नहिं उपजे कदा।। श्री श्रेयांसनाथ भगवान निरपेक्ष होते भी अहो, जग दुख हरो श्रेयांस जिन। सहज जीते कर्म शत्रु, क्रोध बिन शस्त्रादि बिन ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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