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________________ 89 आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह श्री चौबीस तीर्थंकर विधान (खण्ड-३) विधान-पीठिका (गीतिका) श्री आदिनाथ भगवान लीन हो निज ध्येय में, सर्वज्ञ पद पाया प्रभो । आदि तीर्थंकर नमन अविकार हो, सुखकार हो । अखिल जग में, एक शुद्धातम ही भासे सार है । पाया स्वयं में ही अहो, आनंद अपरम्पार है || श्री अजितनाथ भगवान मोह ही हुआ पराजित, अजित प्रभु अविजित रहे । चिद्रूप को आराधकर, शिवभूप जिनवर हो गये ॥ ऐसा पराक्रम प्रगट होवे, निर्विकल्प रहूँ सदा । संतुष्ट प्रभु निर्मुक्त निज में, सहज तृप्त रहूँ सदा ॥ श्री सम्भवनाथ भगवान अहो संभवनाथ दर्शन कर, परम आनन्द हुआ । परभाव विरहित एक ज्ञायक भाव का दर्शन हुआ || भावना जागी सहज, निर्ग्रथ पद अविकार हो । तृप्त निज में ही सदा, पर की न चाह लगार हो || श्री अभिनन्दननाथ भगवान अहो अभिनन्दन प्रभो, स्वीकार अभिनन्दन करो । आत्म आराधन करूँ मैं, आप प्रभु साक्षी रहो ॥ क्रूरता से शून्य होवे, सिंहवृत्ति ज्ञानमय । रहूँ निज में मग्न सहजहिं, कर्म नाशें क्लेशमय ॥ श्री सुमतिनाथ भगवान कुमतिवश धर निमित्त दृष्टि, सहा दुःख अपार है । चिदानन्दमय आत्मा ही, अमित गुण भंडार है ॥ आत्म आश्रय से जिनेश्वर, ध्रुव अचल शिवपद लहा । धनि सुमति जिन, सुमतिदाता जगत त्राता हो अहा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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