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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह उदय नहीं हो दुःख का कारण, यदि स्वभाव का आश्रय हो। निज से च्युत हो दुखी रहे, तो फिर उपचार उदय पर हो। दोष देखना किन्तु उदय का, कही अनीति जिनागम में। उदय उदय में ही रहता है, नहीं प्रविष्ट हो आतम में॥ भेदज्ञान कर द्रव्यदृष्टि धर, स्वयं स्वयं में मग्न रहो। स्वाश्रय से ही शान्ति मिलेगी, आकुलता नहिं व्यर्थ करो। अशरण जग में अरे आत्मन् ! नहीं कोई हो अवलम्बन । तजकर झूठी आस पराई, अपने प्रभु का करो भजन ॥ इन्द्रादिक से सेवक चक्री, कामदेव से सुत जिनके। देखो एक समय पहले भी, नहीं आहार मिले उनके॥ हुई योग्यता सहजपने ही, सर्व निमित्त मिले तत्क्षण। मंगल सपनों का फल सुनकर, नृप श्रेयांस थे हर्ष मगन ।। देखा आते ऋषभ मुनि को, जातिस्मरण हुआ सुखकार। नवधा भक्ति पूर्वक नृप ने, दिया इक्षुरस का आहार ।। पंचाश्चर्य किये देवों ने, रत्न पुष्प थे बरसाए ।। पवन सुगन्धित शीतल चलती, जय जय से नभ गुंजाए। धन्य पात्र है धन्य है दाता, धन्य दिवस धनि है आहार । दानतीर्थ का हुआ प्रवर्तन, घर-घर होवें मंगलाचार ॥ तिथि वैशाख सुदी तृतीया थी, अक्षय तृतीया पर्व चला। आदीश्वर की स्तुति करते, सहजहिं मुक्तिमार्ग मिला। ऋषभदेव सम रहे धीरता, आराधन निर्विघ्न खिले। नहीं मिले भोजन तक फिर भी, आराधन से नहीं चले। थकित हुआ हूँ भव भोगों से, लेश मात्र नहिं सुख पाया। हो निराश सब जग से स्वामिन्, चरण शरण में हूँ आया।
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