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आध्यात्मिक
पूजन
- विधान संग्रह
सम्यक् प्रकाश में नाथ, शिवपथ दिखलाया ।
हम रहें आपके साथ, ये ही मन भाया ॥ पूजें ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामिति स्वाहा । निष्कर्म निरामय देव, अन्तर में पाया ।
ध्यावें नाशें सब कर्म, ये ही मन भाया ॥ पूजें ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामिति स्वाहा । फल पुण्य-पाप के नाथ, भोगे दुःखकारी ।
अब मुक्ति महाफल देव, पावें अविकारी ॥ पूजें ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामिति स्वाहा । ले उत्तम अर्घ्य मुनीश, अति ही हर्षावें ।
चरणों में नावें शीश, ध्रुव प्रभुता पावें ॥ पूजें ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामिति स्वाहा ।
जयमाला
(दोहा)
जयमाला गावें सुखद, मन में धरि उल्लास । यही भावना है प्रभो ! रहें आपके पास ||
(वीरछन्द)
दीक्षा लेकर ऋषभ मुनीश्वर, छह महीने उपवास किया। फिर आहार निमित्त ऋषीश्वर, जगह-जगह परिभ्रमण किया ॥ कोई हाथी-घोड़े - वस्त्राभूषण, रत्नों के भर थाल । ले सन्मुख आदर से आवें, देख साधु लौटें तत्काल ॥ नहिं जानें आहार - विधि, इससे सब ही लाचार हुए। अन्तराय का उदय रहा, तेरह महीने नौ दिवस हुए || धन्य मुनीश्वर, धन्य आत्मबल, आकुलता का लेश नहीं । तृप्त स्वयं में मग्न स्वयं में, किंचित् भी संक्लेश नहीं ॥
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