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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
क्षत् रूप विभव जगमाँहि, प्रभु सम ठुकराऊँ।
अक्षय आतम पद ध्याय, अक्षय पद पाऊँ । सम्मेद शिखर गिरनार, चम्पा पावापुर।
कैलाश आदि सुखकार, पूजत हर्षे उर ॥ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति तीर्थङ्कर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं नि.स्वाहा।
इन्द्रिय सुख दुख के मूल, विष सम जान तनँ।
अमृतमय ब्रह्म स्वरूप, हो निष्काम भनूँ।सम्मेद.॥ ॐ ह्रीं श्री चतर्विशति तीर्थङ्कर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.स्वाहा।
नहिं मिटे भोग की भूख, सचमुच भोगों से।
होऊँ निजरस में तृप्त, बस हो भोगों से सम्मेद.॥ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति तीर्थङ्कर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.स्वाहा।
मोहान्धकार में व्यर्थ, भटका दुःख पाया।
महिमामय जिनवृष पाय, अनुभव प्रगटाया।सम्मेद. ॥ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति तीर्थङ्कर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि.स्वाहा ।
चिनगारी सम्यक्ज्ञान अन्तर में डारी।
प्रजलित हो आतमध्यान, शोधक सुखकारी ।।सम्मेद. ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति तीर्थङ्कर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूपं नि.स्वाहा।
फल पुण्य पाप के माँहिं, भव-भव भटकाया।
शिवफल की प्राप्ति हेतु, अब मन हुलसाया ।।सम्मेद. ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति तीर्थङ्कर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं नि.स्वाहा ।
ले भाव अर्घ्य सुखकार निज में पागत हों।
प्रभु सर्व विभाव असार, दुःखमय त्यागत हों।।सम्मेद. ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति तीर्थङ्कर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.स्वाहा ।
जयमाला
(दोहा) तीर्थ वास की भावना, सहज होय दिन-रात । गाऊँ जयमाला सुखद, ज्ञानमयी विख्यात ।।
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