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________________ 75 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह अतएव करो अभ्यास भव्य, नित आगम अरु अध्यातम का। हो हेयादेय विवेक सहज, श्रद्धान जगे शुद्धातम का ।। शुद्धातम का आराधन ही, अविनाशी शिवपद दाता है। जिनवाणी तो है निमित्त भूत, फल परिणामों का आता है। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालायँ निर्व. स्वाहा। (अडिल्ल) माता सम उपकारी श्री जिनवाणी है। ___ तरण तारिणी नौका सम जिनवाणी है। जो पूजें अभ्यासें, अन्तर प्रीति से। अल्पकाल में छूटे, भव की रीति से॥ ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥ श्री शास्त्र (सरस्वती) पूजन (वीरछन्द) अनेकान्तमय तत्त्व बताती, स्याद्वादमय जिनवाणी। मंगलमय शुद्धात्म दिखाती, नय प्रमाण से जिनवाणी।। भक्ति भाव से पूजा करते, मन में अति हर्षाता हूँ। अन्तर्लीन परिणति होवे, यही भावना भाता हूँ। ॐ ह्रीं श्री जिनमुखोद्भवसरस्वतिवाग्वादिनि ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (छन्द-रोला) भेदज्ञानमय जल लेकर में पूजा करता। शाश्वत ज्ञानानन्दमय आतम दृष्टि धरता ।। जन्म-जरा-मृत दोष सहज विनशावनहारी। जिनवाणी भव्यों की माता सम उपकारी॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं नि. स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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