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________________ 76 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह क्षमाभावमय चन्दन लेकर जजूं सदा ही। क्रोधादिक मम चित्त माँहिं उपजें न कदा ही। असहनीय भव ताप सहज विनशावन हारी।। जिनवाणी भव्यों की माता सम उपकारी ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामति स्वाहा । निर्मल सरल भाव अक्षत से पूजा करता। क्षत्-विक्षत् संयोगी भाव सहज ही तजता ।। अक्षय पद पाऊँ होकर चैतन्य विहारी |जिनवाणी... | ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं नि.स्वाहा। परम शीलमय सुमनों से पूजूं हर्षाऊँ। महाक्लेशमय कामादिक दुर्भाव नशाऊँ। ब्रह्म भावना सदा सभी को मंगलकारी॥जिनवाणी...॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा । ज्ञान शरीरी जड़ शरीर से भिन्न निजातम । आराधन से अहो धन्य होते परमातम ।। चरू से पूनँ भाऊँ आतःः तृप्तिकारी। जिनवाणी भव्यों की माता सम उपकारी। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं नि.स्वाहा। ज्ञानमयी निज शुद्धातम सबको दर्शाती। जो अनादिका मोह महातम सहज नशाती।। पूर्जे ज्ञान प्रदीप जलाऊँ मंगलकारी |जिनवाणी... ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं नि. स्वाहा। कर्मादिक का दोष ज्ञान में नहीं दिखावें। ध्याते ज्ञान स्वरूप, सहज ही कर्म नशावें॥ पूनँ जिनवाणी ध्याऊँ, आतम अविकारी |जिनवाणी...॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै अष्टकर्म-विध्वंसनाय धूपं नि.स्वाहा। अहो ज्ञानघन सहजमुक्त आतम दर्शाया। जिनवाणी माँ के प्रसाद से शिवपथ पाया ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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